--------------: अंदाजा साज़िश का :--------------
झूठ के पुलिंदो को, प्यार से आजमाते रहे..
मतलब की कश्तियों में सवार, लोग आते-जाते रहे..
हंसते-खिलखिलाते-गुनगुनाते, हमें लुभाते रहे...
अंदाजा था साज़िश का, हम फिर भी मुस्कुराते रहें....
कभी सजा का खौफ, कभी जज़ा से बहलाते रहे..
वादा फ़ना का, फिर मुकर जाते रहे..
हवाएं तैश मै, हर लों बुझाते रहे...
अंदाजा था साज़िश का, हम फिर भी मुस्कुराते रहें...
इश्क के नाम पर, ख्वाब दिलकश दिखाते रहे...
रूठ जाने का डर दिखाकर, हर शर्त मनवाते रहे...
बहाना हया का बना कर, नजरें चुराते रहे...
अंदाजा था साज़िश का, हम फिर भी मुस्कुराते रहें...
गैर का नाम लेकर, हमें बुलाते रहे....
कहते हैं प्यार से, यह समझाते रहे...
हर हार का जिम्मेवार, हमें बताते रहे...
अंदाजा था साज़िश का, हम फिर भी मुस्कुराते रहें...
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