मेरे शहर से जो तेरे शहर को जाता है फासला अब वो कूछ यूँ मिटाता है मालूम है की मिलेगा मील का पत्थर मगर रास्ता फिर वही रास आता है मेरे शहर से जो तेरे शहर को जाता है
हर कदम हर डगर आपसी मंथन हर लहर हर शहर चल रही जिंदगी मद्धम आप हम हर दम जी रहे संग-संग उड रही आसमान मे बिन रूके कोई पतंग चल रही है अपनी ही गति मे हवाओं की संगती मे छेडती हर दम नया कोई प्रसंग खिलखिलाती शाम मे रात के चाँद मे लिए सभी जाम है अपने अपने काम है रास्तों को ढूंढता हर मुसाफिर आँख मूंद ऊँघता बिन इच्छ सूँघता बेस्वाद घुंठता कोई तो इंतजार मे है किसी बात मे कब खुलेगी रात ये सोचता दिन रात है