हार के खुद से मै सफ़र में अकेली निकलीं थी सब फिसल जाते है जिस उम्र मे उस उम्र मे मै भी फिसली थी हम दर्द के शक्ल में एक दर्द देने वाला शक्स मिला था पता नहीं था उस के बारे में मुझे कुछ भी पर उसे देख के मेरा चेहरा खिला था जब मिला वो उस उम्र में मासूम थी या थी मैं बेवकूफ पागल थी मैं उसे पाने को भूल बैठी थी मै अपने आप का ही वजूद दिन बीते और आदत लगीं एक दूसरे को जिस तरह जैसे बने एक दिल और दूसरा धड़कन बन गए इस तरह उस की नज़रों में मेरी नहीं चाहत न जाने किस की थीं इतनी पागल हो गई थी मैं की ये सब कुछ समझ ही न सकी बेवफ़ाई दिख गई थी मुझे उस की बस उस के झुटे प्यार ने रोक दिया अपने दर्द अंशु और शिक़ायत चुप चाप समेट के अंधेरी रात में ये दिल फिर से चल दिया
जब बच्चे थे तो सबको दिखा कर रोते थे और जब कोई नहीं देखता था तो आइने में खुद की शक्ल देख कर हसते थे...... और अब सबको दिखा कर हसते है और जब कोई नहीं देखता तो रोते है......।
फिलहाल तो यूँ है की कुछ कर नहीं सकते, तेरे बिन ही मरना होगा... साथ मर नहीं सकते सुखे से पत्तें है.. एक टहनी पे लगे किस्मत तो देखों, के झड़ नहीं सकते...