ना दुनिया की समझ और ना ही सही और गलत का फर्क पता था उसे ,
ना तजुर्बा और ना समझदारी बड़ी मासूम बड़ी कम-शन थी वो लड़की ,
हर किसी पर यकीन करती और अपनी धुन में रहती बड़ी मासूम थी वो लड़की ,
भले ही सपने थोड़े छोटे पर इरादों की मजबूत थी वो लड़की ,
जब थी खुली आंखें तो थी नहीं वो छोटी बच्ची ,
कहते हैं कुछ भारी सा गुजरा था उसके नाजुक से दिल के ऊपर से ,
जो पहले सबको हंसाया करती थी लड़की , अब क्यों थोड़ा कम हंसा सकती है ,
मनमौजी सी वो एक लड़की अब थोड़ा सहमी-सहमी सी अब वो क्यों रहती है ,
कैसे समेटा का होगा उसने यह दुख अपने छोटे से कलेजे में ये बता पाना क्यों अब थोड़ा मुश्किल सा लगता है ,
उसने खोया है अपना सारा बचपन अब वो खुद ही से बातें करती हैं ,
जो हर बात पर हंस जाया करती थी , क्यों सेहमी-सेहमी सी अब वो रहती है....
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