सीमायें सुनसान पड़ी हैं, सरहद पे सन्नाटे है, सांसो के इस जंग में कितने, मेरे अपने जख्मी हो गये हैं, वक्त ने क्या करवट बदली है, जो घर जाने को तरसते थे, अब घर में कैदी हो गये हैं ।
इस कदर मोहब्बत है अपनी मोहब्बत पे की हर एक सांस को उनके नाम करतिहुँ । पता है कि कभी लौट के ना आएंगे फिर भी उनका इंतेजार करतिहुँ । अक्सर देखा है आशिक़ों को रोते हुए पर जब भी उनका याद आताहै,में हसलिया करतिहुँ। कियूं की उस कदर अपनी मोहब्बत से मोहब्बत जो करतिहुँ ।