तेरा क्यों कभी कोई इतवार नहीं होता,
जाड़ा,गर्मी,बरसात,धूप या हो फिर छाँव,
तुझ पर क्या कोई असरदार नहीं होता।
ऐ माँ, सुन ना,आज तू सच-सच बता न,
तेरा क्यों कभी कोई इतवार नहीं होता।
उठती तू सबसे जल्दी, सोती क्यों देर से,
सबको खिलाती पहले खुद खाती देर से।
सब रूठते हैं तुझसे,तू न रूठती किसी से,
तेरा हाथ सबके सरपे,तेरे पे न कोई होता,
ऐ माँ सुन ना, आज तू सच-सच बता न,
तेरा क्यों कभी कोई इतवार नहीं होता।
सब थक जाते हैं चलके,तू क्यों न थकती,
सब कहतें नींद आ रही तू क्यों न कहती,
सब कहते मुझे उठा देना,तू कैसे उठ जाती,
सबको खिलाकर ,तू भूखी क्यों सो जाती।
ऐ माँ सुन ना, आज तू सच-सच बता न,
तेरा क्यों कभी कोई इतवार नहीं होता।
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