मोहब्बत भूल जाऊं गर तो तुम क्या हाल करोगी।
भुला दोगी मुझे तुम या थोड़ा बवाल करोगी।
मेरी तपिश में जल कर अज़ाबों को सह कर तुम,
अदा से दिल तोड़ने का सबसे अर्ज़-ए-हाल करोगी।
मिलोगी कभी तो शिद्दत-ए-एहसास बचाये रखना।
लिपट कर रोएँगे दोनों या तब भी सवाल करोगी।
तह-ए-ख़ाक में तुम दफ़न रखना मिरे सारे राज को,
वादा करो कि मेरे बाद भी खुद की देखभाल करोगी।
दर्द बनकर तुम्हारी सिसकियों में रहूँगा मैं ताउम्र,
मुझे नहीं पाने का तुम कभी नहीं मलाल करोगी।
फ़ुर्क़त का मत सोच , आ बैठ मिरे पास अभी के लिए,
इस ग़ज़ल को पढ़ कर अपना कितना बुरा हाल करोगी।
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