बैठाकर पास हमको चन्द लम्हों का ख़सारा तो किया होता,
दौरान-ए-सफ़र ये एक सितम गवारा तो किया होता।
शब-ए-बारात सा रौशन होता दो जहानों में,
तुमने छूकर इस दिल को सितारा तो किया होता।
बेहद हसीन था सफर बस एक मलाल है,
बातो बातों में ज़िक्र हमारा तो किया होता।
हम सादा मिज़ाज हैं, हमें लहजों की समझ नहीं,
तुम्हे तफ़हीम है, एक इशारा तो किया होता।।
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