मेरे शहर से जो तेरे शहर को जाता है फासला अब वो कूछ यूँ मिटाता है मालूम है की मिलेगा मील का पत्थर मगर रास्ता फिर वही रास आता है मेरे शहर से जो तेरे शहर को जाता है
खुदा गवाह है उन बीते हुए लम्हो का जब तुमने मुझे नही बल्कि मेरी रूह को अपना बना तक़दीर का रास्ता मोड़ कर दिखाया था उस वक़्त तुमने ज़िन्दगी ही नही मेरी मंज़िल से भी मिलाया था ।।