श्रृंगार तेरा यूं बढ़ने लगा है गलियों में तेरी मुझको यूं आता जाता देख कर,
किनारे बहुत है समंदर के फिर भी मैं डूबा न जाऊं तुम्हें देखकर,
देखूं ख्वाब तेरा तेरी बाहों में सोकर ये टूटे कभी ना तुम्हें देखकर...
श्रृंगार तेरा यूं बढ़ने लगा है.....
दामन तेरा ये छूटे कभी ना-2
छूटे अगर कभी तो मैं मर जाऊंगा यूं तुम्हें सोचकर,
चाहत मेरी अब बढ़ने लगी है ख्वाबों में तेरा यूं आता जाता देख कर,
लौटू अगर मैं मंजिल से अपनी पनाह तुम देना अपनी बाहों में लेकर,
श्रृंगार तेरा यूं बढ़ने लगा है गलियों में तेरी....
आवाज दे अगर कोई मैं सुनूं कभी ना तुम्हें देखकर
ख्वाहिश मेरी अब अंतिम यही है मैं मर जाऊं तेरी बाहों में सोकर,
श्रृंगार तेरा बढ़ने लगा है गलियों में तेरी मुझको यूं आता जाता देख कर....
-rajdhar dubey
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