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मुद्दत हुई घर में कोई अपना नहीं आया,
बेटी है कुंवारी यहाँ रिश्ता नहीं आया।
बूढ़ा हुआ है अब वो शजर झुक भी गया है,
मिलने कोई उससे तो परिंदा नहीं आया।
ता उम्र मुहब्बत उन्हीं से करते रहे हम,
इक उम्र है बीती हमें कहना नहीं आया।
जीते रहे औरों के लिए ख़ुश भी बहुत थे,
पर आज वो कहते हमें जीना नहीं आया।
मेहनत किसे कहते हैं, नहीं जानते"मीना",
ऐ.सी. में जो बैठे हैं पसीना नहीं आया।
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