मेरे अपने रुठ रहें हैं मुझसे
ना जाने कौनसी बात मेरी खटक गई है!
तलाश कर रही हैं तकदीर मेरी मुझे
वो नहीं भटका मंजिल ही, मेरी भटक गई हैं!
शुरुआत थी बहुत दूर चलने कि मेरी
मेरी ख्वाहिशे एक ही जगह, अटक गई हैं!
जीना भी तो जरूरी है सांसें उधार कि हैं मेरी
तोहमतें, कड़वाहट हलक मेरी, अब गटक गई हैं!
बारी आई जब संवरने कि अरसे बाद मेरी
उठाया जो आईना देखते ही, वो भी चटक गई हैं !
-(Taste_of_thoughts✍️)
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