आज हमने उनकी आंखों को गुलाबी बनते देखा है,
जिस्म को महकते, चश्म को चमकते देखा है।
जिस मुस्कान की हम वजह नहीं बदकिस्मती से,
उस मुस्कान को उनके चेहरे की आराइश बनते देखा है।
देखा था जो गुलाब हमने, कुछ देर पहले रक़ीब के हाथों में,
उस गुलाब के अक्स को उनकी, आंखों में महकते देखा है।
"अज़ल" बताओं उन बेगानों की बज़्म में तुम्हारा क्या काम,
जहां उन्हें उनके मुख़्तार के साथ मसरुफ़ हमने देखा है....
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