इस मन का मैं क्या करूं? ये मनवा बेपरवाह।
कुछ भी इसको रास नहीं, इसको बस तेरी चाह।।
कहे कन्हैया तू बन जा मैं बन जाऊं तेरी राधे,
मैं शक्ति तू शिव बन जा रहें दोनों आधे-आधे,
जग से मुझको क्या लेना तू थामके रखना बांह।
कुछ भी इसको रास नहीं, इसको बस तेरी चाह।।
मैं सृष्टि बनूं तू जीवन बन, मैं चंचलता तू पूरित मन,
मैं माया बन संसार गढूं, तू जग का मनहर चितवन,
तू सूरज बन अंधियार मिटा, मैं बनूं शीतल छांह।
कुछ भी इसको रास नहीं, इसको बस तेरी चाह।।
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