गुलज़ार भी कितना इस शहर का आसमान है।
मौर्या की शाम से, गंगा किनारे तक ये जहान है।।
भागता भी कितना इस शहर का अरमान है।
भूलते गोलघर से, मॉल्स में अब परेशान है।।
चहकता भी कितना इस शहर का अभिमान है।
मिलता हनुमान के बगल, अल्लाह की शान है।।
विरासत में लिपटी इस शहर की पहचान है।
तख़्त साहिब, तो कहीं शहीद स्मारक इसकी जान है।।
पता नहीं तुमपे कितना इस शहर का एहसान है।
हमारा तो कर्म यहीं, इसी से ईमान है।।
-