पहली जुदाई पर जो दिया, वो खत तुम्हारा ले आया हूँ
कहीं अधरों से चूमा हुआ, कहीं आंसुओ से धुला हुआ
जहाँ पहली मुलाकात हुई, वो घर भी तुम्हें बुलाता है
कुछ पत्तों से दबा हुआ, कुछ धूल से सना हुआ
वो शजर भी सहमा हुआ है, जो दिखता है दरीचे से
कुछ आम से लदा हुआ, कुछ परिंदों से घिरा हुआ
क़यूँ राह तकता है तुम्हारी, वो सामने वाला तालाब
कुछ मछलियों से भरा हुआ, कुछ मजनुओं से घिरा हुआ
क्या बताऊँ क्या हाल है मेरा, शरीर बचा है जान नहीं
कुछ कपड़ो से लदा हुआ, कुछ यादों से सना हुआ
(शजर=पेड़, दरीचा=खिड़की)
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