हैरान हूं मैं
परेशान हूं मैं
जिंदगी की कशमकश में, खुद से अनजान हूं में
पथ में पथिका की खोज हूं में
बढ़ते पग के निशान हूं मैं
मंजिल के बहुत करीब हूं मैं
फिर राह में आती नहीं उलझनों से परेशान हूं मैं
ढलते हुए सूरज की आश हूं मैं
जलते दिए की उम्मीद हूं मैं
भरी महफिल की एक नई पहचान हूं मैं
फिर भी खुद से अनजान हूं मैं...
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