समंदर तू देख तो सही तेरी मिठास से कितनी दूरी है... वजूद तेरा बेशक मुकम्मल है पर जिंदगी तो अधूरी है... नदियों का पनाहगार खुद तू कितना तन्हा रहा ... सागर घुट घुट कर रहना भी तो तेरी एक मजबूरी है... बेसबब बदनाम हुए जो तू अपने गुरूर की एवज में... हम जमी वालों ने कब जाना ठहराव भी जरूरी है... नादियो की चहल पहल सागर तुझ में आ समा गई.. और रंगत सागर तेरी भी तो नूरानी हो गई...