मैं चाय हूँ, तुम हो मेरी मनपसंद चाय की प्याली ,, तुम सुबह का नूर हो, मैं हूं शाम की सुनहरी लाली..! हैं एक दूजे से जुदा हम, पर एक दूजे के लिए बने,, मैं देह भस्म वैरागी सा, तुम बंदगी हो अंतर्मन वाली..!!
अजीब-सा ठहराव आ गया है जीवन में जिस राह भी जाएँ वो सूनसान दिखाई पड़ती है जिस ओर भी देखें हम शून्य ही शून्य है हर तरफ क्या ऐसी ही थी ज़िन्दगी कभी जैसे हैं ये मंज़र क्या वही थे जो पल अब हैं क्या तब भी वही थे
शायद नहीं बदल गया है हर पल और बदल रहा है पल-पल नहीं रहा पहले जैसा वो कुछ भी जो पहले था ठहर गई है ज़िन्दगी एक ऐसे पड़ाव पर आकर अंतिम श्वास को भी अब आस नहीं है कोई इस जीवन का भी अब विश्वास नहीं है कोई