क़्यू देखूं राह उसकी... अकेले चलना कोइ गुनाह नहीं है..।। मोह़ब्बत बची है अभी भी... बस बेपनाह नहीं है..।। सूनी इन आंखों में... अब कराऱ नहीं है..।। हुआ करती थी कभी सिद्दत़ बहुत... अब यूं दिल बेकऱार नहीं है..।। महफूज़ रखा था कभी उन्हे इस दिल में... मगर अब वो इन आंखों का नूऱ नहीं है..।। वो भूल गए बेशक़ दिल लगाना... तो हम भी इश्क़ में इतने चूऱ नहीं हैं..।।