मेरी बस इतनी सी कहानी रही मै कागज़ और कलम की दिवानी रही इस दुनिया के रस्मों रिवाज़ों से मै हरदम जैसे अन्जानी रही लगी रही खुशियों की महफिल हर मोड़ पर पर खुशियां सदा मुझसे बैगानी रही वफ़ा ज़फ़ा इज़ाफ़ा और नफ़ा इश्क के हिस्से आनी जानी रही अल्फ़ाज़ों की दुनिया मे शब्दो के हेर फेर से मुझे अपना दर्द कहने मे आसानी रही मेरी बस इतनी सी ............. मैं कागज़.................
अजीब बात है ऐ ज़िन्दगी! हर इक लम्हा तेरा मुझसे रुबरू होके भी मुझे ही बिखेर जाता है * अजीब बात है ऐ ज़िन्दगानी! मेरी दास्तां बयां करके भी तू मुझसे ही अनजान हैं हे इंसान ! तेरा जिंदगी से कैसा है उलझनों का दौरा ये तुझे उलझाती है तू इसे सुलझाता है ये कैसा विरोधाभास है *************** कभी पूरक बनकर तुझे संवारे तो कभी विपरीत होकर तुम्हें बिखेरे ये हर लम्हा -लम्हा तुम्हें बिखेरे तुम हर लम्हा -लम्हा इसे समेटे
ज़िन्दगी कितना सताती है हस्ते हुए चेहरे को रुलती है हर मोड पर हर वक़्त परीक्षा लेकर आज़्मआती है तोफे में गमो की सौगात दे जाती है और एक दिन अकेला छोड जाती है
तुम चयन हो मेरा,तुम नयन हो मेरा, आंसू 💧गिरते रहे, दर्द 🔥खिलते रहे। मैं तड़पता रहा जिस घड़ी के लिए....... बरसों कभी प्यार♥️ बनके मेरा। मैं बुलाऊं अगर कलम ✒ बनके कभी, लौट आना सदा शब्द🎯 बन कर मेरा........✍🏻।