पिंजरे में जो बंद हैं, खुला आसमां उन्हें दोगे क्या
एक सवाल पूछती हूँ, जवाब दोगे क्या
हैवानियत खूब दिखाई तुमने, इंसानियत का परिचय अब दोगे क्या
रावण के पुतले खूब जलाये, इस बार खुद में छिपे रावण को आग दोगे क्या
जो रंजिशे हैं तुम्हारी बाकियों से, अब मिटाओगे क्या
एक सवाल पूछती हूँ, जवाब दोगे क्या
प्यार तो कभी दिया न इन बेजुबानो को, अब गालिया कम करोगे क्या
किताबें तो खूब पढ़ी हैं तुमने, इन बेज़ुबानों को कभी पढ़ोगे क्या
जो रंजिशे हैं तुम्हारी बाकियों से, अब मिटाओगे क्या
एक सवाल पूछती हूँ, जवाब दोगे क्या
जिन्हें तुम अनसुना कर बढ़ जाते हो, कहो इस बार उन्हें सुनोगे क्या
पत्थर पर दूध तो खूब चढ़ाये तुमने, अबकी बार दूध तुम गरीबों में दोगे क्या
बुढ़ापे में जो हारे हुए हैं, उनका सहारा तुम बनोगे क्या
जो रंजिशे हैं तुम्हारी बाकियों से, अब मिटाओगे क्या
एक सवाल पूछती हूँ, जवाब दोगे क्या.....
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