जैसे-जैसे शाम गहराने लगती है ,
मुझे घर की याद सताने लगती है ||
दिन तो कट जाता है यूँही ,
मगर रात कुछ समझ नहीं आती है |
जैसे ही बिस्तर पर लेटो ,
माँ की गोद सताने लगती है |
वो माँ के हाथों का खाना ,
और पापा की डाट उल्झाने लगती है |
सपने तो नहीं आते अब ,
लेकिन, खुली आँखों में ,,
उनकी तस्वीर दिखाने लगती है |
जैसे-जैसे शाम गहराने लगती है ,
मुझे घर की याद सताने लगती है ||
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