तूने भी पलायित कर दिया हमें...
जो पटरियां हमने बिछाई थी, दिन और रात
आज उन्ही ने अपनो से, अलग कर दिया हमें।
लम्बी सड़के, चौड़े फुटपाथ, हमने बनाए थे रातो-रात
आज उन फुटपाथों से भी, दर-बदर कर दिया हमें।
बड़ी-बड़ी इमारतें बना, शहर तेरा बसाया था गजब
आज उसी शहर ने, घरों से बे-दखल कर दिया हमें।
जिनको हमने ही पहनाया था, अमीरी का ताज
आज उन्ही अमीरों ने, भिखारी सा कर दिया हमें।
पिकनिक मनाकर लौटे थे जो, चंद आसमानी जहाजों से
आज अपने ही स्कूलों में, भेड़-बकरी सा कर दिया हमें।
गरीबी थी, मज़बूरी थी, क्यों शहर में ही मजदूरी थी
अब देख जरा, हां, ये शहर,
तूने भी पलायित कर दिया हमें।
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