सुनो,एक दिन तुम्हें सुनाऊंगा
वो कविता जिसमें सिर्फ तुम होगी
हुस्न-ओ-इश्क से परे की कविता,
जिसमें तुम अपने आप में गुम होगी,
सुनो,सुनाऊंगा तुम्हें कि जब तुम,
कहती हो दूर होने की बातें,
तो दिन भर झल्लाता फिरता हूँ
और फिर मैं, जलाता हूँ उदास रातें
सुनो, सुनाऊंगा वो कविता एक दिन,
जिसे सुनकर तुम मुस्कुराओगी
उस आख़िरी कविता के बाद
तुम ठण्डी हवा सी,
मेरी रूह में समा जाओगी ।
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