तेरी यादें मुझमें यूँ बिखरी हैं जैसे प्रकृति में हवा मैं.... अक्सर ही किसी एक याद को तितली सा हौले से पकड़ लेती हूँ .... कुछ देर ठहरकर उड़ जाती है हाथ छुड़ाकर आसमाँ में ... बिल्कुल तेरी फितरत की तरह लेकिन... छोड़ जाती है मेरी उंगली पर तेरे कुछ रंग तब मैं मन के कागज पर उंगली छाप कर लिख देती हूँ रंगबिरंगी कोई कविता कोई गज़ल हर रात... फिर सैकड़ों बार पढ़ कर मसूसस करती हूँ तुझे और महकती रहती हूँ दिन भर....।
सच्चे प्यार की तड़प तुम्हें क्या पता, तू ने तो कभी सच्चा प्यार किया ही नहीं..!! हर किसी का दिल तोड़ा हैं तू ने, किसी के साथ दिल से रिश्ता जोड़ा ही नहीं..!!