सुकून की तलाश में दरबदर भटकना,
आदत कहे या तलाश पसंद।
हर तलाश को आज़माया फ़नाह हो कर,
पर हवाओं में गुम थी सुकून की भीनी सुगंध।
ठोकरों से रूह जख्मी , बेजान खड़ी,
दिल का ना रहा जैसे जिस्म से संबंध ।
अंततः लडख़ड़ा कर तेरे द्वार पर हारा,
सोचता हूँ कहाँ , क्यों फिरता रहा मारा ।
महक वही अब हवाओं में , फिर रूह को जुनून है।
खत्म तलाश ये, ईश्वर तेरे साये में ही सुकून है.......
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