जिंदगी जीने निकले थे और रास्ते हजार निकले,
ख़ुदा का शुक्र है की अपने हुनर पे सवार निकले।
हम अकेले नहीं थे इसलिए जरा संभल कर निकले,
क्या जाने किस हमदम के लिबास से तलवार निकले।
इक कामयाबी के पीछे थे और उसपर फ़रार निकले,
नई उरूज के लिए ज़वाल से भी खुद को उभार निकले।
क़लम से या ख़्याल से कह लो मगर बातों में तो,
मिसरे सारे मेरे ही सबसे जुदा और ज़ोर-दार निकले।
मुश्किल लगे तो बता देना ओ काफ़िर इस यार को,
तुम्हारे ना-गहाँ होने से ही मेरे लेख बावक़ार निकले।
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