क्यों हर इंसान सिर्फ अपने बारे मे है सोचता,
खुद की ख़ुशी,फायदे के लिए हर हद है पार करता।
ये ज़मी,ये आसमां,ये चाँद,ये सितारे,
जब खुदा ने बनाये हम सभी के लिए,
फिर क्यों खींच दी हमने रंग,मज़हब की लकीरें..
जब लहू का रंग एक है सबका,
फिर क्यों इंसानियत नही सभी मे..
हर रोज़ कत्ल होता है जिसका,
दर्द अखबार की सुर्खियों मे है छलकता,
मत रख खुद मे अहम इतना,पराये दर्द को अपना समझो,
हल है हर परेशानी का,साथ मे कदम बढ़ाकर तो देखो।
कोशिश करने से,झुक जाने से शान कम नहीं होती,
अगर बच जाते हैं टूटे रिश्ते,उस इंसानियत से किरदार है महकता।
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