वाह ! किताबों की भी क्या अलग ही पहचान हैं... कभी पढ़ने के काम आती हैं तो कभी जलाने के । कभी किसी के चेहरे पर खुशी का कारण बनती है तो कभी किसी के दुख का।। वाह ! किताबों की भी क्या अलग ही पहचान हैं... कभी सूरज की रोशनी में किसी जलते हुए पात्र के समान । तो कभी चांदनी रात में किसी ठंडे घड़े के समान शितलता प्रदान करती हैं।। वाह ! किताबों की भी क्या अलग ही पहचान हैं... अपने शब्दों के माया ज़ाल से कभी हसाती है कभी रूलाती हैं। कभी लेखक की जीवनी बयां करती है तो कभी लेखक की जीवनसंगिनी बन जाती हैं । अब किताबों का क्या ही कहना उनकी भी एक अलग ही पहचान होती हैं।।।
किताबों की तरह बदल जाये जिन्दगी, तो क्या बात हो। पढ़े कोई,कोई रखे सिरहाने,कोई रखे खत इसमे, तो क्या बात हो। जब फूल हो इसमे कोई पहली मुलाकात का , मजा तो तब है जनाब । क्या बात हो।
पुलिंदा किताब का हम पीछे छोड़ आए हैं। राहगिर हूँ आज का सबने आजमाए हैं। किताबों के साथ कुछ जादा वक़्त हमने न बिताये हैं। सफर में हमसफ़र बन के साथ कुछ निभाए हैं। किताबों के साथ अक्सर नीद बहुत आई है Exem" कुछ मेने लिखा है कुछ किताबों ने लिखवाएं हैं। रिस्ता ये पुराना बचपन से किताबों ने अपना निभाया था। जीस वक़्त खेरियत पूछने भी कोई भी न आया था। अब वो वक़्त पुराना हम पीछे छोड़ आए हैं। उनसे ही अपना नाता तोड़ आये हैं। पुलिंदा किताबों का अब हम पीछे छोड़ आए हैं।.........
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