भरे जख्म फिर से सताने लगे है वो फिर से कही दिल लगाने लगे है जिन्हे भूलने मे जमाने लगे है वो अब गैर संग नज़र आने लगे है दवा वो नशे से भुलाए जो सपने वही ख्वाब आँखो मे छाने लगे है जो गुज़रे है वक़्त क़यामत के जैसे उसी दौर मे हम जाने लगे है
जितना हम सोच लेते है कदम बढ़ाने से पहले ही ना जाने क्यों मुंह मोड़ लेते है मुश्किलें हमेशा तो नहीं रहती उनसे भी हम लड़ सकते है थोड़ी प्रयास कर अपने ख्वाबों को हम भी तो हकीकत में बदल सकते है