उसको मालुम नहीं है के वो क्या बनेगा
वो जो शख्स सोचता है कि ख़ुदा बनेगा
वो,मैं, तुम,सब यार फ़कत मिट्टी ही तो हैं
पहले राख बनेगी ,बाद उसके धुँआ बनेगा
बस इसी ज़िद ने उसे तन्हा कर रखा है
उसकी ज़िद थी की सबसे जुदा बनेगा
आज कितनी दिलकश धूप है, जानाँ
आज फ़िर तुम्हारी याद का कोहरा बनेगा
जाती हो तो मुझे कुछ आँसू देती जाओ
बाद तुम्हारे ये शहर तो सहरा बनेगा
देखना तुझसे जलने लगेंगे ये सितारे
तू जब भी बनेगा , सबकी दुआ बनेगा ।।
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