एक आस बनाये चल रहा हूँ
एक प्यास बनाये चल रहा हूँ
चलते चलते जिंदगी को ख़ास बनाये चल रहा हूँ
तुम कुछ भी कहो सच या झूट में एहसास बनाये चल रहा हूँ
रात में तारों को अपना और तुम को सपना बनाकर
क्या बनाना था जिंदगी को क्या बनाये चल रहा हूँ
सोचता हूँ जब क्या तुम थे और क्या हम थे
उस जिंदगी से बेहतर तो ये गम थे
तुमने न गले से लगाया कही
ना पास बिठाया ना आंसू कोई बहाया कभी
में क्या हूँ ये भी ना बताया कभी
तन्हाइयों से भी ना बचाया कभी
ना गहराईयों में अपनी डुबाया कभी
ना हमको जिंदगी बताया कभी
ना आँखों में देखा, ना दिल में बसाया कभी
तुम क्या हो मेरे लिए ये भी ना जान पाया कभी
एक आस ही तो है, जो अपने पास ही तो है
तुम जो भी हो ये मेरे एहसास ही तो है
फिर ना तुमको खोया ना पाया कभी
मगर इस आस की प्यास ना बुझा पाया कभी !.................
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