हाँ, सच ही तो है,अब मैं तुमसे प्यार नहीं करती,
क्योंकि मुझे तो तुमसे कभी ना खत्म होने वाली मुहब्बत जो हो चुकी है।
हाँ, सच ही तो है...
अब तुम्हारे नज़दीक नहीं रहा करती,
क्योंकि तुमसे रूहानी जुड़ जो चुकी हुँ मैं
जिस्मानियत से भी परे।
हाँ, सच ही तो है...
अब तुमसे मिलने की तड़प नहीं होती मुझमें,
क्योंकि खुद में तुम्हारी सौंधी सी महक महसूस होती है मुझे।
हाँ, सच ही तो है...
अब साथ नहीं हम-तुम,
खाई थी कभी कसमें साथ निभाने की,कभी अकेला ना छोड़ जाने की,प्यार मोहब्बत से हर फर्ज़ निभाने की,संग ये पूरी ज़िन्दगी बिताने की,एक दूसरे का सहारा बनने की...
हाँ,पर ये भी सच ही तो है...
कि तूने फर्ज से अपने परिवार के अपने,
समझाया था मुझे दूर रहने को,
मैं नासमझ तेरे प्यार में बावरी,
समझ ही पाई कभी,जब राधा को ना मिला कभी श्याम, तो तुझको कैसा अभिमान।
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