सुना ना हो ऐसा एक किस्सा सुनाऊँ क्या ?
बड़़ी रुचि दिखा रहे हो, तुम्हें हकीकत बताऊं क्या ?
उसने सास को 'मम्मी जी' कहा और माँ को गाली देने लगा,
भेदभाव के एक नए नजरिए से, तुम्हें रूबरू कराऊं क्या ?
झूठ कलयुग में खड़ा है, सच को दफनाकर,
अब इस झूठी दुनिया को, सीना चीर के, दिखाऊं क्या ?
गलत स्त्री के साथ खड़ा है, सही स्त्री को मारे वो,
ये भेदभाव है कैसा, मैं तुम्हें समझाऊं क्या ?
शायद रुपया सर चढ़ा है, या वो 'मैं' में लीन हुआ,
खूनी रिस्तों का खून किया है, अब सबूत दिखाऊं क्या ?
एक ही छत के नीचे वो अंजान बना बेपरवाह सा रहता है,
'शादी' से बदली है उसने करवट, अब उसे मैं बुलाऊं क्या ?
शब्द भी शर्मा रहें हैं मेरे, इस कविता में उतरने के लिए,
बड़ी तकलीफों से लिखा है आधा सच, आधा कल बताऊं क्या ?
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