QUOTES ON #JUNOON

#junoon quotes

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10 FEB 2019 AT 12:22

Tujhe chaahna agar hai khataa..
To manzur hai mujhe har sazaa...

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सुनो न...
ज़िक्र करते हैं तेरा इस क़दर अल्फाज़–ए–महताब..
की दुनियां शायरी को मिरी जुनूँ–ए–इश्क़ कहती है
❤️❤️❤️

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22 JUN 2020 AT 8:41

तन्हाई के इस मंजर को तेरा नज़राना बना रक्खा हूँ,
तेरी फूल सी मीठी यादों को, खजाना बना रक्खा हूँ।

तुमसे जुड़ने की कोशिश में हर रोज टूटने लगा हूँ मैं,
रोता हूँ अक्सर ,आंसुओं को हरजाना बना रक्खा हूँ।

आदत सी पड़ी है तेरी सूरत को अब आईने में ढूंढने की,
तुम्हारी हर एक तस्वीर को ,प्यार जताना लगा रक्खा हूँ।

तेरे बगैर जी लिया अगर तो ये सफर इश्क़ सा कहाँ,
नहीं लगाता मर्ज ज़ख्मों के, यूँ दुखाना लगा रक्खा हूँ।

खो जाता हूँ मैं अब भी अक्सर तुम्हारे ख्वाबों ख्यालों में,
फुरसत मिले तो आना ,तुम्ही को दीवाना बना रक्खा हूँ।

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16 JUN 2020 AT 8:44

"हौसला"

आंधियों से कह दो कोई हौसलों में हम जिगर रखते हैं,
आसमाँ ही बताए तो अच्छा है,कितना ऊंचा हुनर रखते हैं।

सुना है पूरा शहर डूबा पड़ा है तेरी इन काफिर उफ़ानों में,
आने दे तेरा समंदर भी,हम कदमों के नीचे लहर रखते हैं।

देखना कभी गौर से मुझे चिरागों की तरह जलते मिलेंगे ,
रात के अंधियारों में अक्सर,आफताब सा दोपहर रखते हैं।

जिद में निकला हूँ तो ये जीत के काफिले भी बनते जाएंगे,
तू बेखबर है मेरे मुक्कदर से ,हम आहटों की खबर रखते हैं।

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27 JUN 2020 AT 8:57

"मत रोको मुझे"

नया सा है सफर मेरा अपने हौसलों में ऊंची उड़ान लिख रहा हूँ ,
मत रोको मुझे आज ,मंजिल-ए-सफर में आसमान लिख रहा हूँ।

याद रखेगा मुझे जहां सारा कुछ यूँ अपनी पहचान लिख रहा हूँ,
किस्मत की कलम से, मुश्किल-ए-डगर का अंजाम लिख रहा हूँ।

तिमिर क्या छलेगी उजियारे को, तोड़ने को गुमान लिख रहा हूँ,
ज़िद है मेरे मुक्कदर का, चाँद-तारों को ये पैगाम लिख रहा हूँ।

निकल पड़ा हूँ तूफ़ाँ में आज कुछ इस कदर नए सपने लेकर,
ठोकरों की कद से ऊंचा इन ,मंजिलों को अरमान लिख रहा हूँ।

बचपन से जिनकी छाया में हूँ उनके नाम-ए-ऐलान लिख रहा हूँ,
मत रोको मुझे आज कि, माँ -बाप को ही भगवान लिख रहा हूँ ।

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17 JUN 2020 AT 9:19

"आहट ज़िन्दगी की"

हर कदम पर तोड़कर मुझे ,
बेतहाशा मेरा इम्तिहान लेती है,
सुना है ज़िन्दगी तू जान नहीं लेती है,
बता..........फिर ये आहट किसकी है।

क्या खूब सपने दिखती है,
छोड़ने के लिए ही मुझसे मिलने आती है,
हर रोज बदल रही है खुशबू अपनी,
बता....... हक में मेरे मिलावट किसकी है।

उजालों का बहाना बनाती है,
डराने को मेरी ही परछाई लाती है,
आईने में ख़ंजर अपनों के ही दिखे,
बता.......सोच में इतनी गिरावट किसकी है

कैद करके मुझको पिंजरे में ,
क़िस्मत को मेरी निठल्ला बताती है,
उड़ने दे कि हौसला बहुत है मुझमे,
बता....... मंजिलें मेरी रुकावट किसकी है।

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19 JUN 2020 AT 9:05

"ज़िन्दगी - दरिंदगी"

अगर बता दूं कि ज़िंदा हूँ ,तो तू शर्मिंदा हो जाएगी,
ज़िन्दगी बस कहने को है,तू फिर दरिंदा हो जाएगी।

ये जमाना हंस रहा है ,इन्हें काबिलियत की खबर नहीं,
गर उठ गया निडर होके,ज़िन्दगी तेरी निंदा हो जाएगी।

अब टूट कर भी चलना सिख रहा हूँ, देख हौसला मेरा,
तू भी ठोकरों से उठकर ,मंजिलों का परिंदा हो जाएगी।

एक शख्श चाहिए जिसकी ज़िद हो तूफ़ाँ में चलने की,
ये हारी हुई मुक्कदर की नस्लें,फिर ज़िंदा हो जाएंगी।

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18 JUN 2020 AT 10:08

"हिसाब ज़िन्दगी का"

सबका हाथ है तबाही में,ज़िन्दगी तुझे किसका हिसाब दूँ,
अपने ही हैं हर ज़ख्म में, कहे तो खजरों की किताब दूँ।

जो मेरे हर सांस की खबर रखते थे अब बेखबर हैं हमसे,
तू ही बता अपने ही लिखे खतों के भला कैसे जवाब दूँ।

कहाँ पूछता खैरियत कोई की सब यहां तोड़ने में लगे हैं,
टूटे परिंदों के दर्द लिए बैठा हूँ, तू कहे तो वो सैलाब दूँ।

रखने लगा हूँ दिल में बच्चा अब तेरे के हर मोड़ के लिए,
मुस्कुरा देता हूँ बेवजह अकसर ,तू कहे तो वो शबाब दूँ।

ज़िन्दगी अब तू भी कुछ हिसाब दे कि तू भी कम नहीं,
तू तो अपनी थी शायद,तू कहे तो बर्बादी के खिताब दूँ।

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21 JUN 2020 AT 12:59

🛡️HAPPY FATHER'S DAY🛡️

MY FATHER ❤️ MY INSPIRATION

बिना वो उंगलियां पकड़े ,कहाँ कुछ हासिल होना है
पापा की जेब में देखा मैंने ,हर कीमती खिलौना है।

हौसलों में शामिल उनके साहस की क्या मिसाल दूँ,
बिखरे कभी सपने अगर ,तो पापा एक बिछोना हैं।

खुशियों को अपने परे रख हर राह मेरा आसान किया,
लौटा सकूँ वो खुशियां उन्हें ,उस काबिल मुझे होना है।

उनकी मौजूदगी से ही सबके घर का घर सा होना है
बना रहे हर रिश्ता कुछ यूँ, प्यार के धागे में पिरोना है।

यूँ तो "माँ-बाप" में समाहित संसार का हर कोना है,
लिख पाए उतना सबकुछ ,मेरा कलम अभी बौना है।

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4 JUL 2020 AT 7:58


"मुक्कदर का सिकन्दर"

तेरी गलतफहमियों के दीवार गिराना चाहता हूँ,
अपने मुक्कदर में कुछ,ऐसा फ़साना चाहता हूँ।

हुनर तो पूरा आसमान नापने का लिए बैठा हूँ,
कर लूं मुट्ठी में कैद ,ये सारा जमाना चाहता हूँ ।

ला रख दे काफिला तू मुसीबतों का ऐ ज़िन्दगी,
तेरी हर बाधा में ,खुद को आजमाना चाहता हूं ।

पूरा आसमाँ सज़ा पड़ा है जुगनुओं की चमक में,
किस्मत को अपनी कुछ ,यूँ चमकाना चाहता हूं।

मिली तरक्की मुझे इनकी गिराने की कोशिशों में,
इन दुश्मनों से मिलने का, अब बहाना चाहता हूँ।

बहुत हुआ अपमान माताओ-बहनों का जहाँ में,
इन दरिंदों की हस्ती,दुनिया से मिटाना चाहता हूँ।

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