जुल्म सहकर भी लोग मदहोश बैठे हैं
ना जाने क्यों देख कर भी खामोश बैठे है
क्यों ऐसा लग रहा है कि सब बेहोश बैठे हैं
इंसाफ के लिए भी गुजारिश किए जा रहे हैं
बेगुनाहों को सजा दिए जा रहे हैं
बेगुनाह ना होकर भी वह अपने सर झुका रहे हैं
अपने हक को पाने के लिए मिन्नते लगा रहे हैं
फिर भी यह निष्ठुर लोग उनको ठेंगा दिखा रहे हैं
आवाज उठेगी नहीं उनकी वह सर झुकाए खड़े हैं
और गुनहगार नहीं है वह फिर भी मुंह छुपाए खड़े हैं
अपनी जखम को वह दिखाना चाहते है
मगर अपने गुरूर के मद में चूर लोग
उनके जख्म को छुपाए खड़े हैं
-