कहने को तो बोहत कुछ है
पर हर वक्त जुबा बोला नही करती
कभी समझ ले आखो के इशारे भी ऐ मेरे दोस्त
हर वक्त जुबा बोला नही करती
यु तो कहना बोहत सा है , पर शब्द बया नही करते
दिल की हर तकलीफ को जुबा बोला नही करते
यु तो मुस्कराते है हरदम, ताकि कोई पढ ना ले दास्ताँ-ऐ-दील
पर सबको दीखाना भी तो याहा लाजमी नही दास्ताँ-ऐ-दिल
चुपसे होजाते कभी कभार हम राज- ए- दील मे छुपाते
सिमट कर रह गये युही दर्द छुपाते छुपाते
अब लगने लगा है यह चुप्पी आदत सी बन जायेगी
यही जीने की आदत हो जायेगी
कभी तो समझ ले नजर - ऐ - बया मेरे दोस्त
क्युकी हर वक़्त जुबा बोला नही करती
-