उम्र-ए-दराज ये शख़्स तिरी इबादत करेगा, बस तू अपनी जिंदगी में मसरूफ हो जाए| यूँ अपनी यादों के अफसाने मेरे पास रहने दो, फिर किस दिन न जाने जिंदगी की शाम ढल जाए ||
जहां अच्छाई होती हैं, वहा बुराई भी होती हैं और जहां बुराई होती हैं वहा अच्छाई भी होती हैं.... लेकिन ऐसा क्यों होता हैं सबको बुराई नजर आता हैं अच्छाई नहीं.....
समाज क्या सोचेगा यह सोच कर हम अपनी जान क्यों दें जबकि समाज किसी का सगा नहीं होता.... अगर आपसे कोई गलती हो गई हो तो उसको सुधारिए अच्छे बनिए लेकिन अपना जान मत दीजिए ऐसे बनिए कि जो लोग आपका शिकायत करता फिरता था वो आपका तारीफ करने पर मजबूर हो जाए..... आपको क्या लगता हैं आपके मरने के बाद सब ठीक हो जायेगा लेकिन नहीं ये समाज हैं मरने के बाद भी आपका पीछा नहीं छोड़ेगा... अपने हक के लिए लड़ना सीखो अपना जान दे कर आज तक किसी ने कुछ हासिल नहीं किया... हमें एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए किसी और के वजह से हम अपना जान क्यों दें।