चाहे कितना भी चाहू की तुझे ना चाहू...
मेरी चाहत तुझे चाहना नहीं छोडती...
जब भी दिल में होती है बेक़रारी...
तेरी चाहत ही दिल के है सारे रास्ते खोलती...
जी तो लु, मैं भी तेरे बिना ग़र चाहू तो...
पर मेरी चाहत ये इजाज़त न देती...
बस चाहना ही तुझे हो इबादत अब मेरी...
मेरे ख़ुदा से यही इल्तजा है करती...
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