आज ,
संगम की रेत पर
जब उस मासूम को चलते देखा
न जाने क्यों
अपने दिल को अचानक धड़कते देखा
यह धड़कन कुछ अजीब सी थी
बेचैनी थी पर तहजीब सी थी
न जाने वह क्यों खुश थी
जबकि वह काफी गरीब सी थी
चांद जैसे चेहरे पर होठों की लाली थी
चहकते चेहरे पर सपनों की बाली थी
पूरा करती भी तो करती कैसे अपने सपने
इस स्वार्थी दुनिया में उसकी जेब जो खाली थी
लिपटी हुई मिट्टी से बेच रही वह रोली थी
साहब,साहब,ले लो ,उसकी यह मीठी बोली थी
सोचा देखू उस नंगे पॉव ने कितना कमाया
जब अंदर झांका तो उसकी खाली झोली थी
कुछ ना होकर सब कुछ उसके पास था
नंगे पांव ही सही पर,अपनेपन का एहसास था
हर रंग में ,उसका अलग ही एक रंग था
शायद इसीलिए उसका चेहरा मेले में सबसे खास था
खास था,खास था......
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