QUOTES ON #INSAAN

#insaan quotes

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3 MAR 2019 AT 14:36

Raazi Raha karo Khuda ki Raza Me,
Tumse Bhi Bhot Majboor insaan he is Jahaan Me..!!!

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30 NOV 2019 AT 22:42

ये दुनिया मेरे समझ से अब अंजान है,
यहां इंसानों के शक्ल में रहते हैवान है...
मसल दी जाती है यहां बेटियां जो इस ज़मीं की शान हैं,
इन ख़बरों का अख़बार में आना अब बहुत आम है...

सरकारें क्यों नहीं लेती कोई सख़्त फ़ैसला,
यह देख दिल भी बोल उठा हुकूमत बेईमान है...
अरे फांसी दे दो,ज़िंदा जला दो या बीच चौराहे पर भूनवा दो,
इस जुर्म के लिए इन शैतानों का बस यही अंजाम है...।।।

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29 JAN 2017 AT 15:02

कुछ देर से समझे....
वो पत्ते टूटे ही उड़ने के लिए है
तो फिर हम तो इंसान है ||

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30 JUL 2018 AT 17:25

देख कर शर्मिंदा है गिरगिट भी फ़न इंसान का ,
नादान खुद को शाह-ए-शातिर समझता था. . .

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13 NOV 2018 AT 15:17

यूँ तो इंसानों ने बदले हैं फ़ैशन बहुत
पर मुखौटा हमेशा ही पसंदीदा रहा है

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9 JUN 2021 AT 17:42

Ghair mahram mard per bharosa aurat ki sabse badi bewaqoofi hai ye aisa hi hai jaise band pinjre me maujood sher pr taras kha ke use azaad karna is yaqeen ke saath ki wahid aap wah ladki ya insaan hai jise wah nahi khayega , halanki dar haqeeqat wah sabse pahly aap ko hi khayega..

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12 NOV 2018 AT 22:06

अक्सर सोचता हूँ,
काश किताबें भी बोल पाती
तो कभी इन्तज़ार ना करना पड़ता,
काश ये किताबें भी सुन पाती
तो कभी एहसासों को बिखरना ना पड़ता,
काश ये किताबें भी चल पाती
तो कहीं भी तन्हा शामें ना होती,
काश ये किताबें भी इंसानों सी होती
तो इंसानों की कभी ज़रूरत नहीं होती!

फिर सोचता हूँ,
ये किताबें इंसान ना ही हो तो बेहतर है
बोल, सुन, चल नहीं पाती
मगर कम से कम इंसानों की तरह ये दिल तो नहीं दुखाती!


#PoolofPoems

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2 JUL 2020 AT 16:57

मैदान में हारा हुआ इंसान फ़िर जीत सकता है।।
लेकिन मन से हारा हुआ इंसान कभी नहीं जीत सकता ।।

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5 JUN 2020 AT 13:12

जो छीन रहा है तू मेरी हर ख्वाहिश को
ए खुदा, तू इंसान कब से हो गया....

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15 APR 2021 AT 15:13

देखकर सूरज की गर्मी अब मैं ढलना चाहता हूं।
वक्त नहीं है साथ मेरे, वक्त को बदलना चाहता हूं।
कभी फुर्सत मिले तो मेरे साथ भी एक लम्हा बिता लेना,
इंसान हूं इंसान को समझना चाहता हूं।

देख कर चांद की शीतलता को अब मैं उगना चाहता हूं।
समझ में आता नहीं इंसान की ये कैसा प्राणी है।
बदन की कैद से अब मैं बाहर निकलना चाहता हूं।
इंसान हूं इंसान को समझना चाहता हूं।

देखकर हौसलों को मेरे कभी-कभी सूरज भी शर्मा जाता है।
मैं वह शख्स हूं जो सब कुछ बदलना चाहता हूं।
रंजीश शुरू हुई थी जिस चौखट से वहीं पर खत्म करना चाहता हूं।
इंसान हूं इंसान को समझना चाहता हूं।

मुसाफिर हूं अनजान रास्तों का, पता ना किसी गैर से अब मैं पूछना चाहता हूं।
कभी तितली तो कभी भंवरा बनकर मैं अब फूलों पर मंडराना चाहता हूं।
यह बताने की कोशिश ना कर मुझे की कैसे चलना है मुझे कर्तव्य पथ पर,
मुसाफिर हूं कभी इधर तो कभी उधर भी मैं चलना जानता हूं।

कि थक हार कर बैठने वालों में से नहीं मैं,
हर रोज की शुरुआत अब मैं एक नई ऊर्जा से करना चाहता हूं।
हौसला देखकर मेरा समंदर भी बोल पड़ता है,
किस किस्म के इंसान हो 'राज' तुमको देखकर मैं अब खुद को बदलना चाहता हूं।

-rajdhar dubey

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