हज़ार दफ्फ़ा
तेरा नाम लिखा पन्ने पे ,
ओर मिटा दिया _
मैनें तुझे मेरे दिल की दिवारों पे
कुछ यूँ सज़ा दिया _
तुम मेरी हर बात में कुछ
इस क़दर शामिल हो ,
ये देखकर शमा ने
परवाने से गिला किया _
जिस तरह लौ से
दिपक जला करता है ,
तेरा वजूद मुझमें
कुछ यूँ खिला करता है _
मेरी खामोशी भी अक्सर
वहा बोला करती है ,
जहा बातें तेरी हुआ करती है _
सुनो प्रिएतम ,
हो जाओ ना तुम मेरे ,
इस रिश्ते को कभी-कभी एक नाम की तलब उठतीं हैं .................................................................................................................♡.— % &
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