मैं बारिश की बोली समझता नहीं था
हवाओं से मैं यूँ उलझता नहीं था
है सीने में दिल भी, कहाँ थी मुझे ये ख़बर
कहीं पे हो रातें, कहीं पे सवेरे
आवारगी ही रही साथ मेरे
"ठहर जा, ठहर जा, " ये कहती है तेरी नज़र
क्या हाल हो गया है ये मेरा?
आँखें मेरी हर जगह ढूँढें तुझे बेवजह
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह?
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