मैं अब समझी.....मैं अब समझी
मेरे घर छोड़ते हुए
क्यों होती थी बेचैन
कभी भीतर जाती
बिना काम के ,
तो कभी कहती
गया है तिनका आँख में ....
उन लाल आंखों का राज़
माँ ,मैं अब समझी ......
पूछती बार-बार
"फिर कब आओगी "
और मेरा कहना _
"बहुत जल्दी "
सुन कर भी रहती परेशान
उस अव्यक्त पीड़ा का
क्या था राज़
माँ,मैं अब समझी ........
जाते हुए सौ नसीहतें
और हज़ार मन्नतें ..
आज निकली हूँ
जब उस राह ,
उन मोह के धागों का
क्या था मोल
माँ ,मैं अब समझी !
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