बलात्कार मेरा हुआ था ,
पर बलात्कारी मेरे अनेक थे ,
किसी ने मेरा दुपट्टा छीना ,
किसी ने मुझे नोचा ,
किसी ने बीच सड़क मुझे रोका ,
किसी ने मेरी आबरू लूटी ,
वो भी थे जिन्होंने मेरी मौत का तमाशा देखा ,
वो भी थे जिन्होंने मुझीपे लांछन लगाए ,
वो भी थे जिन्होंने मुझे धिक्कारा,
वो भी थे जिन्होंने मुझे गंदी नजरो से देखा ,
ये समाज भी था जिसने कभी आवाज़ न उठाई ,
गुनहगार मेरे सभी थे, मेरे लोग,मेरा समाज ,
मेरा देश और उसका कानून भी ,
मेरे संग अत्याचार पर, सभी ने मेरा हाथ छोड़ा ,
अपना साथ छोड़ा,मुझे मौत की डगर पर धकेला ,
बलात्कारी मेरे सभी थे ,
फर्क बस इतना था...
किसीने मेरे तन को नोचा
तो
किसीने मेरे मन को .........
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