ऐ! मेरे राह- रौ , हमराही सुन ले ज़रा
छोड़ दे तक़दीर के भरोसे चलना ज़रा।
ऐ! मसीहा तशवीश में, न यूं वक्त जाया कर,
ज़ुल्मत से निकल सफ़र मजाज कर।
शरर बन अपनी शनाशाई के लिए
क्यूं कर रहा किसी और को बेनकाब हौसला अफजाई के लिए।
प्यार खुदा ने दी वो इबादत है, दुआ है
बिना प्रेम के बयाबान जहां में मुकम्मल ही क्या है।
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