हम कुम्हार है अपनी माटी के,
खुद को रख दुनियादारी कि चाक पर ,
खुद अपना आकार बनाते हैं,
कहीं जिंदगी कि ठोकरों से टूट ना जाएँ,
इसलिए खुद को मुश्किलों कि आग में
तपाते हैं,
कभी दीया बनकर रोशनी देते हैं,
कभी घड़ा बनकर अपने में जल
संजोते हैं,
हम कुम्हार है अपनी माटी के,
खुद को रख दुनियादारी कि चाक पर,
खुद अपना आकार बनाते हैं..!!
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