कभी शामों में लौटकर,वो आना भूल जाता हैं।
करके खफ़ा मुझे,वो मनाना भूल जाता है।
इन्हीं आदतों ने उसकी,मुझे बदनाम कर डाला।
वो लिखकर नाम दीवारों पर,मिटाना भूल जाता है,
और मत पूछ मोहब्बत में लापरवाही उसकी,
वो देकर ज़ख्म,महरम लगाना भूल जाता हैं।
कुछ यूं दिलनशी होता हैं उसके याद का मंजर,
वो जब याद आता है, जमाना भूल जाता हैं।।
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