बस कर जिन्दगी अब और सहा नहीं जाता,
यूँ घुट घुट के मुझसे अब रहा नहीं जाता,
यूँ टूटकर बिखर चुकी हूँ अब तो की,
किसी रोज़ मेरे दिल की दहलीज पर भूल भटककर,
अगर कोई खुशी आ भी जाए तो खुश हुआ नहीं जाता,
क्यूँकी परख चुकी हूँ अब मैं अपनी बदकिस्मती को,
किसी रोज़ हँस लिया तो अगले दिन रोना तय रहता है,
ए जिन्दगी! बस इतना बता दे की खता क्या है मेरी,
किस बात की सज़ा दे रही है तू यूँ मुझे,
या सच में मैं किसी भी खुशी के लायक ही नहीं हूँ...!
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